गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् । उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ।।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीको मध्याह्नके समय विघ्नविनायक
भगवान् गणेशका जन्म हुआ था। अतः यह तिथि मध्याह्रव्यापिनी लेनी चाहिये। इस दिन रविवार अथवा मंगलवार हो तो प्रशस्त है। गणेशजी हिन्दुओंके प्रथम पूज्य देवता हैं। सनातन धर्मानुयायी स्मार्तोंके पञ्चदेवताओंमें गणेशजी प्रमुख हैं। हिन्दुओंके घरमें चाहे जैसी पूजा या क्रियाकर्म हो, सर्वप्रथम श्रीगणेशजीका आवाहन और पूजन किया जाता है। शुभ कार्योंमें गणेशकी स्तुतिका अत्यन्त महत्त्व माना गया है। गणेशजी विघ्नोंको दूर करनेवाले देवता हैं। इनका मुख हाथीका, उदर लम्बा तथा शेष शरीर मनुष्यके समान है। मोदक इन्हें विशेष प्रिय है। बंगालकी दुर्गापूजाकी तरह महाराष्ट्रमें गणेशपूजा एक राष्ट्रिय पर्वके रूपमें प्रतिष्ठित है।
कैसे करें गणेश चतुर्थी व्रत?
गणेशचतुर्थीके दिन नक्तव्रतका विधान है। अतः भोजन सायंकाल करना चाहिये तथापि पूजा यथासम्भव मध्याह्नमें ही करनी चाहिये, क्योंकि –
पूजाव्रतेषु सर्वेषु मध्याह्रव्यापिनी तिथिः । अर्थात् सभी पूजा-व्रतोंमें मध्याह्रव्यापिनी तिथि लेनी चाहिये।
भाद्रपद शुक्लपक्षकी चतुर्थी तिथिको प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर अपनी शक्तिके अनुसार सोने, चाँदी, ताँबे, मिट्टी, पीतल अथवा गोबरसे निर्मित गणेशकी प्रतिमा बनाये या बनी हुई प्रतिमाका पुराणोंमें वर्णित गणेशजीके गजानन, लम्बोदरस्वरूपका ध्यान करे और अक्षत- पुष्प लेकर निम्न संकल्प करे-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य दक्षिणायने सूर्ये वर्षर्तों भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे गणेशचतुर्थ्यां तिथौ अमुकगोत्रोऽमुकशर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहं विद्याऽऽरोग्यपुत्रधनप्राप्तिपूर्वकं सपरिवारस्य सर्वसंकटनिवारणार्थं श्रीगणपतिप्रसादसिद्धये चतुर्थीव्रताङ्गत्वेन श्रीगणपतिदेवस्य यथालब्धोपचारैः पूजनं करिष्ये। मम हाथमें लिये हुए अक्षत-पुष्प इत्यादि गणेशजीके पास छोड़ दे।
इस प्रकार करें गणेश जी की पूजन
इसके बाद विघ्नेश्वरका यथाविधि ‘ॐ गं गणपतये नमः’ से पूजन कर दक्षिणाके पश्चात् आरती कर गणेशजीको नमस्कार करे एवं गणेशजीकी मूर्तिपर सिन्दूर चढ़ाये। मोदक और दूर्वाकी इस पूजामें विशेषता है। अतः पूजाके अवसरपर इक्कीस दूर्वादल भी रखे तथा उनमेंसे दो-दो दूर्वा निम्नलिखित दस नाममन्त्रोंसे क्रमशः चढ़ाये –
१-ॐ गणाधिपाय नमः,
२-ॐ उमापुत्राय नमः,
३-ॐ विघ्ननाशनाय नमः,
४-ॐ विनायकाय नमः,
५-ॐ ईशपुत्राय नमः,
६- ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः,
७- ॐ एकदन्ताय नमः,
८-ॐ इभवक्त्राय नमः,
९-ॐ मूषकवाहनाय नमः,
१०-ॐ कुमारगुरवे नमः ।
पश्चात् दसों नामोंका एक साथ उच्चारण कर अवशिष्ट एक दूब चढ़ाये। इसी प्रकार इक्कीस लड्डू भी गणेशपूजामें आवश्यक होते हैं। इक्कीस लड्डूका भोग रखकर पाँच लड्डू मूर्तिके पास चढ़ाये और पाँच ब्राह्मणको दे दे एवं शेषको प्रसादस्वरूपमें स्वयं ले ले तथा परिवारके लोगोंमें बाँट दे।
पूजनकी यह विधि चतुर्थीके मध्याह्नमें करे। ब्राह्मणभोजन कराकर दक्षिणा दे और स्वयं भोजन करे।
पूजनके पश्चात् नीचे लिखे मन्त्रसे वह सब सामग्री ब्राह्मणको निवेदन करे-
दानेनानेन देवेश प्रीतो भव गणेश्वर। सर्वत्र सर्वदा देव निर्विघ्नं कुरु सर्वदा। मानोन्नतिं च राज्यं च पुत्रपौत्रान् प्रदेहि मे ॥
इस व्रतसे मनोवाञ्छित कार्य सिद्ध होते हैं; क्योंकि विघ्नहर गणेशजीके प्रसन्न होनेपर क्या दुर्लभ है ? गणेशजीका यह पूजन बुद्धि, विद्या तथा ऋद्धि-सिद्धिकी प्राप्ति एवं विघ्नोंके नाशके लिये किया जाता है।
कई व्यक्ति श्रीगणेशसहस्रनामावलीके एक हजार नामोंसे प्रत्येक नामके उच्चारणके साथ लड्डू अथवा दूर्वादल आदि श्रीगणेशजीको अर्पित करते हैं। इसे गणपतिसहस्त्रार्चन कहा जाता है
कब करनी चाहिए गणेश स्थापना
क्या है मुहूर्
िस प्रकार जन्माष्टमी पर मध्यरात्रि में श्री कृष्ण का जन्म हुआ, श्री राम नवमी पर मध्यान्ह 12 बजे प्रभु श्री राम का जन्म हुआ उसी प्रकार भगवान गणेश जी की उत्पत्ति मध्यान्ह 12 बजे हुई थी।