श्री हनुमत जन्मोत्सव

  • Home
  • Blog
  • श्री हनुमत जन्मोत्सव

श्री हनुमत जन्मोत्सव

चैत्र मास की पूर्णिमा को सूर्योदय के समय मेष लग्न में मनेगा श्री हनुमान जन्मोत्सव

शिवपुराण की मान्यतानुसार चैत्र मास में पूर्णिमा के दिन हनुमानजी महाराज का जन्म ठीक सूर्योदय के समय हुआ। एक मत यह भी है की हनुमानजी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भी माना गया है। परंतु शास्त्रांतर में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को ही हनुमतजन्म का उल्लेख किया है।

कैसे हुआ हनुमानजी का जन्म

शिवपुराण की कथा के अनुसार रामावतार के समय ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को वानर व भालुओं के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हो कर श्री रामजी की सेवा करने का आदेश दिया। इसी क्रम में परम राम भक्त सदैव रामप्रिय भगवान शिव ने भी रामजी की सेवा में अपने अंशावतार में जन्म लेने हेतु भगवान विष्णु का मोहिनी रूप देख लीलावश काम में व्याकुल हो श्रीरामजी का कार्य करने हेतु अपना वीर्यपात किया सप्तर्षियों ने उस वीर्य को पत्ते पर स्थापित कर पवन के वेग से गौतम की पुत्री अञ्जनी में कर्ण के द्वारा रामचन्द्रजी के कार्यार्थ प्रवेश कराया और महाबली पराक्रमी वानर शरीर वाले शिवजी के अंशावतार श्री हनुमानजी का जन्म हुआ जो सदैव रामजी की सेवा में तत्पर रहते है।

कैसे मनाए हनुमान जयंती

साधक को हनुमान जयंती के एक दिन पूर्व व्रत कर ब्रह्मचर्य का पालन कर पृथ्वी पर शयन करे और रात्रि की चौथी प्रहार में उठ कर स्नान आदि कर पवित्र वस्त्र धारण कर ब्रह्मा मुहूर्त में “मम शौर्यौदार्यधैर्यादिवृद्धयर्थं हनुमत्प्रीतिकामनया हनुमज्जयन्तीमहोत्सवमहं करिष्ये” यह संकल्प करके हनुमान्जीका यथाविधि षोडशोपचार पूजन करें। पूजनके उपचारोंमें गन्धपूर्ण तेलमें सिन्दूर मिलाकर मूर्ति को चर्चित करे, पुष्प आदि चढ़ाए तथा नैवेद्य में घृतपूर्ण चूरमा या घीमें सेंके हुए और शर्करा मिले हुए आटे या बेसन का लड्डू एवं केला, आम, अमरूद आदि फल अर्पण करके ‘वाल्मीकीय रामायण’के सुन्दरकाण्डका पाठ कर ठीक सूर्योदय पर भगवान के जन्म के समय भगवान की आरती करें, तत्पश्चात हनुमते नमः का जाप करें। इसके पश्चात दिनभर रामचरितमानस का पाठ करे जिस से हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होगी।
संक्षिप्त में इन श्लोकों का भी पाठ किया जा सकता है

जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः । राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः ॥ दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः । हनूमाशत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः ॥ न रावणसहस्त्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत् । शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्त्रशः ॥ अर्दयित्वा पुरीं लङ्कामभिवाद्य च मैथिलीम् । समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम् ॥

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *