त्रेता युग के विशिष्ट और रुद्र अवतार हनुमान जी का अलग ही संदर्भ आता है। विशेष कर इसलिए क्योंकि हनुमान जी अष्ट सिद्धि नव निधि के भी दाता है। रुद्र केअंश स्वरूप में हनुमान जी का अवतरण और भगवान श्री राम की सेवा का भाव साक्षात महाशिव की शिव लीला ही है। त्रेता युग से लेकर कलियुग तक सनातन धर्म की विशेषता उसके भक्ति के रंगों से आच्छादित है। यह कहना सही है की सनातन धर्म का अध्यात्म भक्ति के दृढ़ व समर्पित रंगों से रंगा हुआ है। हनुमान जी रुद्र अवतार माने जाते हैं और सबसे मुख्य बात रामनवमी के पांचवें दिन हनुमान जी की जयंती आती है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर हनुमान जी का प्राकट्य है। ग्रंथों व कथानकों के माध्यम से अलग-अलग कथाएं शास्त्र संदर्भ में निहित है।
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत वीरा
हनुमान जी का प्रताप बड़ा ही निराला है। श्री राम के द्वारा चिरंजीव होने का वरदान और भगवान शिव की विशेष कृपा, माता सीता का आशीर्वाद और पंच महाभूत की विशेष कृपा इन सब का एकत्रित स्वरूप में हनुमान जी का सिद्ध क्रम होना त्रेता युग की विशेष गाथा को बताता है। हनुमान जी की साधना के लिए श्री राम जी ने त्रेता युग में ही कलियुग के संबंध के चिंतन को बता दिया था। यही कारण है कि श्री राम जी ने हनुमान जी को विशेष वरदानों के माध्यम से चिरकाल तक पृथ्वी पर रहने का वरदान व आशीर्वाद प्रदान किया क्योंकि वे जानते थे कलयुग में अलग-अलग चरणों में संकट, दुख, चिंता, कष्ट व्याधि, पीड़ा आदि बढ़ेंगे इनकी निवृत्ति के लिए जो धर्म के माध्यम से भक्ति के सोपान को स्पर्श करेगा वही सुरक्षित रहेगा। इन्हीं माध्यमों को एकत्रित करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी के बल पराक्रम पर स्तोत्र पाठ लिखे हैं उनके आवर्तन करने से जीवन में संकट पीड़ा कष्ट चिंता सब निवृत हो जाते हैं निरंतर हनुमान जी के पाठ स्त्रोत पाठ आदि करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और संकट समाप्त होते हैं
बल व युक्ति को देने वाले हनुमान जी
हनुमान जी की विशेषता अलग-अलग प्रकार से मुनियों द्वारा गाई गई है, जिसमें उनके पराक्रम शौर्य, बल, बुद्धि के चातुर्य से किस प्रकार राम व लक्ष्मण प्रभावित हुए थे यह रामायण में उल्लेखित है किंतु हनुमान जी के संबंध में उनके द्वारा किए गए सेवा कार्य को देखें तो बहुत कुछ सीखने में व समझने में आएगा किस प्रकार बल को प्राप्त किया जा सकता है और किस प्रकार से युक्ति के माध्यम से किसी प्रकार की समस्या का समाधान किया जा सकता है विशेष कर तब जब वह कोई विशेष संकट की घड़ी हो तब कैसे अपने इष्ट की कृपा के माध्यम से विश्वस्त होकर के समस्या का निराकरण हो सकता है यह सब हनुमान जी अपने लीला प्रकृति में देखने व समझने में बता रहे हैं।
सामंजस्य व सहयोग के सूत्र में आगे बढ़ाने वाले
जिस प्रकार सुग्रीव को किष्किंधा राज्य का राजा बनाने के लिए राम जी वचनबद्ध थे उनके वचन में पूर्णता लाने का प्रथम सोपान हनुमान जी ने स्थापित किया। क्योंकि राम जी और सुग्रीव जी के मध्य मैत्री संबंध को स्थापित करने वाले और परिस्थिति तथा बल, शक्ति के मध्य सामंजस्य सेवा सहयोग करने वाले हनुमान जी थे। यह वर्तमान में संसार को एक प्रकार का संदेश भी है कि सरलता, शक्ति, बल, पराक्रम, पुरुषार्थ, सामान्य सेवा, सेवक के माध्यम से कितने सफल हो सकते हैं यह सीखने की आवश्यकता है।
प्रेम भक्ति में समर्पण के युगपुरुष
हनुमान जी की भक्ति राम जी के प्रति जग जाहिर है जिस प्रकार भक्ति के प्रति समर्पण अर्थात् राम जी के प्रति समर्पण व प्रेम की भावना भरत से कम नहीं थी यहां पर प्रेम व भक्ति का एक अलग ही सामंजस्य अनुभव करने में आता है अत्यधिक प्रेम भक्ति की ही पराकाष्ठा है हालांकि भक्ति एक अलग संबंध विषय है प्रेम एक अलग संबंध विषय है किंतु फिर भी हनुमान जी का राम जी के प्रति प्रेम को प्रभु भक्ति दोनों को संयुक्त रखने का सुख हनुमान जी के पास में है यहां पर यह सीखा जा सकता है की परिवार में भी माता-पिता या वरिष्ठ के प्रति प्रेम भावना या सद्भावना रखने से स्थिति शीघ्रता से नियंत्रित होती है और क्लेश समाप्त हो जाते हैं।
चिरंजीवी होकर चिरंजीवी होने का आशीर्वाद प्रदान करने वाले
भारतीय दर्शन आठ चिरंजीवियों की गाथा कहता है उनमें से एक हनुमान जी महाराज है वर्तमान में कलियुग के प्रथम चरण में सभी प्रकार के संकटों से मुक्त होने के लिए पीड़ा से मुक्त होने के लिए दुख चिंताओं से मुक्त होने के लिए हनुमान जी की शरण में लोग जाते हैं पूजा अर्चना करते हैं और अपने दायित्व के निर्वाह के लिए चिरंजीवी होने का आशीर्वाद मांगते हैं ताकि सभी प्रकार से सुरक्षा की प्राप्ति हो सके और भविष्य में लोग अपने परिवार तथा बच्चों के लिए आनंद व सुख शांति के साथ आगे की यात्रा बढ़ा सके।
हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए यह उपाय करने चाहिए
हनुमान चालीसा का पाठ हनुमत स्तोत्र
हनुमान वडवानल स्तोत्र हनुमान साठिका
पंचमुखी हनुमान कवच एकादशमुखी हनुमान कवच इनके पाठ यथा विधि श्रद्धा के साथ करने से पारिवारिक सुख, शांति, स्वास्थ्य, सुरक्षा व दीर्घायु की प्राप्ति होती है।