होलिका का पूजन

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होलिका का पूजन

प्रदोष काल में होलिका का पूजन
पंचांग की गणना के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में होलिका के पूजन की मान्यता है। इस बार 24 मार्च को रविवार के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र की साक्षी में प्रदोष काल के दौरान होलिका का पूजन होगा। कुछ स्थानों पर भद्रा के बाद पूजन की मान्यता बताई गई है। जबकि कन्या राशि के चंद्रमा की साक्षी में आने वाले पर्व पर भद्रा पाताल लोक में निवास करती है। इस दृष्टि से इसमें कोई दोष नहीं है। अर्थात प्रदोष काल में ही होलिका का पूजन किया जाएगा।

पाताल वासिनी भद्रा होने से शुभ मंगलकारी
हर बार होलिका का पूजन एक या दो साल के अंतराल में भद्रा की साक्षी में आता ही है। यह भी लगभग स्पष्ट है कि होलिका के पूजन पर भद्रा का दोष कितना मान्य है या नहीं। इस विषय पर यदि चर्चा की जाए तो ज्योतिष शास्त्र में भद्रा का वास चंद्रमा के राशि संचरण के आधार पर बताया गया है। यदि भद्रा, कन्या, तुला, धनु राशि के चंद्रमा की साक्षी में आती है तो वह भद्रा पाताल में वास करती है और पाताल में वास करने वाली भद्रा धन-धान्य और प्रगति को देने वाली मानी गई है। इस दृष्टि से भद्रा की उपस्थिति शुभ मंगल कारी मानी गई है।

उत्तरा फाल्गुनी की साक्षी में रहेगा रंग का पर्व
नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार देखें तो होलिका का पूजन प्रदोष काल में होगा। इस समय उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रहेगा। यह नक्षत्र कन्या राशि की कक्षा में आता है। मुहूर्त चिंतामणि की गणना से बात करें तो उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में किया गया कार्य विशेष पर्व काल पर आता हो तो यह नक्षत्र धन-धान्य की वृद्धि देने वाला माना जाता है।

कब है रंगों वाली होली
हर साल फाल्गुन मास में होली का पर्व मनाया जाता है। इस साल 24 मार्च के मध्य रात्रि से लेकर 25 मार्च के दोपहर तक होलिका दहन का उचित समय है। जबकि कुछ स्थानों पर मध्य रात्रि के उपरान्त होलिका दहन का शुभ समय माना गया है। इसके अनुसार 25 मार्च को रंगों वाली होली यानि धुलंडी खेली जाएगी।

घर में सुख-शांति व रोग दोष की निवृत्ति करता
पौराणिक कथाओं में अलग-अलग प्रकार के संदर्भ होलिका के संबंध में प्राप्त होते हैं। इसका सकारात्मक पक्ष उठाएं तो पर्व काल पर होलिका का पूजन करने से पुत्र-पौत्र, धन- धान्य की प्राप्ति होती है। क्योंकि पौराणिक मान्यता में होलिका का पूजन विधि विधान से पंचोपचार पूजन की मान्यता के साथ करने से रोग दोष की निवृत्ति होती है। साथ ही घर परिवार में सुख शांति होती है। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण घर परिवार बना रहता है।

धर्म-सत्यता की प्रकट पराकाष्ठा
प्रहलाद की भक्ति धर्म और सत्यता के निकट है। यह हमारे जीवन में संकल्पों के प्रति दृढ़ मान्यता का भी परिचायक है। यह कहने और सोचने वाले पर निर्भर करता है कि हम धर्म किस प्रकार से मानते हैं। सामान्यतः धर्म धारण करने की अवस्था है। अच्छे विचारों को धारण करना जो पंच महाभूत से संबद्ध हो व संतुलन करना सिखाता है। संतुलन सीख हम सत्य के निकट पहुंच जाते हैं।

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